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Tuesday 7 November 2017

चंद चेहरे पूरी क़ौम की पहचान नहीं हैं

चंद चेहरे पूरी क़ौम की पहचान नहीं हैं
बाबर, औरंगज़ेब ही सिर्फ मुसलमान नहीं हैं
इस ज़मीं ने बख़्शे हमीद, अशफ़ाक़ और कलाम
तुम्हारी फ़ेहरिस्त में ये मुसलमान नहीं हैं

पहले वो दिखाते थे अपनी दहशत
अब उनकी दहशत तुम दिखाते हो
मोहब्बत से जीत नहीं सकते दिल
चिता पर रोटी सेंककर खाते हो
देश में तुमसा कोई बेईमान नहीं है
चंद चेहरे पूरी क़ौम की पहचान नहीं हैं

तुम्हारे ही शब्दों में हिंदू और मुसलमान क्यों है
तुम्हारे ही शब्दों में आरती और अज़ान क्यों है
तुम्हारे ही शब्दों में गीता और कुरआन क्यों हैं
तुम्हारे ही शब्दों में कब्रिस्तान-श्मशान क्यों है
ये तो हमारी गंगा-जमुनी ज़बान नहीं है
चंद चेहरे पूरी कौम की पहचान नहीं हैं

तुम न राम के हो न रहमान के
न ही पंडित के हो न पठान के
तुमसे क्या उम्मीद करे कोई
न जाने तुम हो किस धर्म-ईमान के
हिंदुस्तानी जैसे तुम्हारे 'अरमान' नहीं हैं
चंद चेहरे पूरी कौम की पहचान नहीं हैं...
#अरमान

12 comments:

  1. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 09-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 846 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

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    1. सूचना (संशोधन) -

      नमस्ते, आपकी रचना के "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) में प्रकाशन की सूचना
      9 -11 -2017 ( अंक 846 ) दी गयी थी।
      खेद है कि रचना अब रविवार 12-11 -2017 को 849 वें अंक में प्रातः 4 बजे प्रकाशित होगी। चर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं।




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  2. वाह! सुभान अल्लाह!बहुत उम्दा!!!बधाई और आभार!!!!

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  3. तुम्हारे ही शब्दों में हिंदू और मुसलमान क्यों है
    तुम्हारे ही शब्दों में आरती और अज़ान क्यों है
    तुम्हारे ही शब्दों में गीता और कुरआन क्यों हैं
    तुम्हारे ही शब्दों में कब्रिस्तान-श्मशान क्यों है
    ये तो हमारी गंगा-जमुनी ज़बान नहीं है
    चंद चेहरे पूरी कौम की पहचान नहीं हैं।

    आहा। क्या ख़ूब कविवर। बहुत तेजाबी लिखते हो। बहुत ही उम्दा

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई और शुभकामनायें।

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  5. वाह! बहुत सुन्दर

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  6. वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर भाव....
    सही कहा ;चंद चेहरे पूरी कौम की पहचान नहीं है....
    लाजवाब प्रस्तुति....

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  7. सुन्दर रचना.

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  8. बहुत खूब ... काश की ये बात हर इंसान समझ पाए ... और इंसानियत को धर्म बनाये ...

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  9. बहुत ही सार्थक लेखन है | सचमुच सभी धर्मों में सभी तरह के लोग होते हैं | केवल कुछ असमाजिक तत्वों को उनके धर्म का चेहरा मान लेना बहुत संकुचित मानसिकता है |

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